नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी (Biography of Subhash Chandra Bose) ने हम सबको बहुत प्रभावित किया है। सुभाष चंद्र बोस का जन्म ( Biography of Subhash Chandra Bose) 23 जनवरी 1897 को तत्कालीन ब्रिटिश भारत के कटक (वर्तमान में उड़ीसा में स्थित) में हुआ था। सुभाष चंद्र बोस ( Biography of Subhash Chandra Bose) ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी. ए. ऑनर्स ( दर्शनशास्त्र ) किया था।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जन्म (Biography of Subhash Chandra Bose) जिस कटक में हुआ वो ब्रिटिश भारत में बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था और ओड़िसा डिवीजन के नाम से जाना जाता था। नेता जी भारत के अग्रणी नेता और सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष (1938) के रूप में भी कार्य किया। आज़ाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर भी थे।
जवाहर लाल नेहरू के साथ भगत सिंह और गांधी जी
पारिवारिक जीवन और शिक्षा
नेता जी का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था। नेता जी के पिता शहर के मशहूर वकील हुआ करते थे। नेता जी के माता-पिता की कुल 14 संतानें थीं, जिनमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र बोस उनकी नौवीं संतान थे और बेटों में पांचमें नंबर पर थे।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेडिएट स्कूल में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए वे कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज में गए। बाद में उनके माता-पिता ने भारतीय प्रशासनिक सेवा ( Indian Civil Services) की तैयारी के लिए बोस को इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। सिविल सेवा में सुभाष चंद्र बोस ने चौथा स्थान हासिल किया।
जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस
स्वंतत्रता संग्राम में उनके कार्य
सुभाष चंद्र बोस को 1919 में बी.ए.ऑनर्स में प्रथम स्थान मिला। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। सुभाष चंद्र बोस ने बाद में भारत में हो रहे राजनीतिक उथल-पुथल के बीच उन्होंने आईपीएस से इस्तीफा दे दिया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए।
सुभाष चंद्र बोस देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्य से काफी प्रभावित थे। वे उनके साथ काम करना चाहते थे। इंग्लैंड से उन्होंने चित्तरंजन दास को खत लिखकर उनके साथ काम करने की इच्छा जताई। भारत लौटने पर वे गुरू रविंद्रनाथ टैगोर की सलाह पर मुंबई गए और गांधी जी से मिले। 20 जुलाई 1921 को गांधी जी से सुभाष चंद्र बोस की मुलाकत हुई।
गांधी जी की सलाह पर उन्होंने कलकत्ता आकर दासबाबू के साथ काम करना शुरू कर दिया। दासबाबू गांधी जी के असहयोग आंदोलन का कलकत्ता में नेतृत्व कर रहे थे। सुभाष चंद्र बोस दासबाबू के साथ इस आंदोलन में सहभागी हो गए। 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी का गठन किया।
गुमनामी बाबा और नेता जी
कलकत्ता महापालिका में उनके कार्य
कलकत्ता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी के जीतने के बाद दासबाबू के महापौर बने और नेता जी को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया गया। सुभाष चंद्र बोस ने कार्यकारी अधिकारी बनने के बाद कलकत्ता महापालिका का पूरा ढ़ांचा बदल दिया। अंग्रेजों के नाम पर रखे कई गलियों और रास्तों का नाम बदलकर भारतीय नाम रखे गए। महापालिका में स्वतन्त्रता संग्राम में प्राण न्यौछावर करने वालों के परिवारजनों को नौकरी मिलने लगी।
पूर्ण स्वतंत्रता की मांग और इंडिपेंडेंट लीग का गठन
सुभाष चंद्र बोस ने जवाहर लाल नेहरू के साथ मिलकर युवकों की एक इंडिपेंडेंट लीग की शुरूआत की। 1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो उसे काले झंडे दिखाए गए। कलकत्ता में सुभाष चंद्र बोस ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू पूर्व स्वराज की मांग कर रहे थे। लेकिन गांधी जी ऐसा नहीं चाहते थे।
तब कांग्रेस में अंत में यह तय किया गया कि यदि अंग्रेज डोमिनियन स्टेटस देने की मांग को एक साल के अंदर पूरी नहीं करती है तो कांग्रेस पूर्व स्वराज की मांग करेगी। लेकिन अंग्रेज सरकार ने स्टेटस देने से मना कर दिया। 1930 में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ। इस अधिवेशन में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया।
26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे। तभी पुलिस ने लाठी चार्ज किया और कई क्रांतिकारियों सहित सुभाष चंद्र बोस को जेल में डाल दिया। तब गांधी जी ने अंग्रेजी सरकार से समझौता किया और सुभाष चंद्र बोस को रिहा करवाया गया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को छोड़ने से साफ मना कर दिया।
Subhash Chandra Bosh
भगत सिंह की फांसी को लेकर गांधी ने अंग्रेज सरकार के साथ नरमी से बात की। इस बात से नेता जी नाराज थे। वे चाहते थे कि गांधी जी अंग्रेज सरकार से समझौता तोड़ दें। लेकिन गांधी ने समझौता तोड़ने के पक्ष में नहीं थे और तब अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दे दी। भगत सिंह को फांसी के बाद नेता जी गांधी जी और कांग्रेस की कार्यशैली से काफी नाराज हुए।
1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे। यूरोप में वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। फिर वे आयरलैंड के नेता डी वलेरा से भी मिले और दोनों अच्छे दोस्त बन गये। 1934 में जब सुभाष चंद्र बोस अपने पिता के मृत्युशय्या पर होने की खबर मिली तो वे तुरंत हवाई जहाज से कलकत्ता (कोलकाता) पहुंचे। हालांकि कलकत्ता पहुंचते ही उन्हें अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें वापस जेल भेज दिया और फिर बाद में यूरोप भेज दिया।
सुभाष चंद्र बोस को अपने जीवन काल में कुल 11 बार कारावास की सजा हुई। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में छह महीने का कारावास हुआ। अंग्रेज़ सरकार ने ज्वलन्त क्रांतिकारियों को उत्प्रेरित करने के शक में सुभाष चंद्र बोस को गिरफ्तार कर अनिश्चित काल के लिए उन्हें वर्मा (वर्तमान म्याँमार) के माण्डले कारागृह में बन्दी बनाकर भेज दिया।
कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा
1938 में गान्धीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष को चुना, लेकिन उन्हें सुभाष की कार्यपद्धति पसन्द नहीं आयी। 1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का समय आया तब गान्धी ने अध्यक्ष पद के लिये पट्टाभि सीतारमैया को चुना। हालांकि रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रफुल्लचन्द्र राय और मेघनाद साहा जैसे वैज्ञानिक सुभाष को ही फिर से अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते थे।
गान्धीजी ने इस मामले में किसी की बात नहीं मानी। 1939 का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। अधिवेशन के बाद नेता जी गांधी जी से समझौते के लिए कई कोशिशें की लेकिन बात नहीं बनी। आखिर में तंग आकर 29 अप्रैल 1939 को सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
जर्मनी में हिटलर से मुलाकात
29 मई 1942 को सुभाष चंद्र बोस जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले। लेकिन हिटलर ने उन्हें मदद को लेकर कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया। जब नेता जी को लगा कि हिटलर और जर्मनी से उन्हें कुछ और नहीं मिलने वाला है तब उन्होंने 8 मार्च 1943 को जर्मनी के कील बन्दरगाह से आबिद हसन सफरानी के साथ पूर्वी एशिया के लिए निकल गये।
पूर्वी एशिया पहुँचकर बोस ने सबसे पहले वयोवृद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस से भारतीय स्वतन्त्रता परिषद का नेतृत्व सँभाला। 21 अक्टूबर 1943 के दिन नेताजी ने सिंगापुर में आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द (स्वाधीन भारत की अन्तरिम सरकार) की स्थापना की। इस सरकार को नौ देशों ने मान्यता दी। जिसमें जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड शामिल थे। वे खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बनाए गये।
आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतों के लिये झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी। पूर्वी एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण दिए और लोगों से आजाद हिंद फौज में भर्ती होने और आर्थिक मदद करने का आह्वाहन किया। अपने भाषण में अन्होंने लोगों को एक संदेश भी दिया- “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।” बाद में यह एक प्रसिद्ध नारा बना।
Neta Ji Subhash Chandra Bosh
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु
सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर कई विवाद हैं। 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया जाने के क्रम में लापता हो गए। 23 अगस्त 1945 को रेडियो टॉकियो ने बताया कि 18 अगस्त को नेता जी जिस बमबर्षक विमान से आ रहे थे वो दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हालांकि 1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। जिसमें यह बात सामने आई कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था।
हालांकि भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया। 18 अगस्त 1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गये, यह कोई नहीं जानता। बाद में कई लोगों ने भारत में सुभाष चंद्र बोस को देखे जाने का दावा किया। फैजाबाद का गुमनामी बाबा की बात भी सामने आई। हालांकि सरकार ने इस सभी मामलों में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। आज भी नेता जी की मौत एक रहस्य है।