Biography of Bhagat Singh
Hindi Biography of Bhagat Singh: शहीद भगत सिंह भारत के महान क्रांतिकारी थे। वे एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अदम्य साहस के साथ अंग्रेजी शासन और अंग्रेजों से मुकाबला किया। देश के उन्होंने हँसते-हँसते अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और फाँसी के फंदे पर लटक गए। भगत सिंह के बलिदान को देश आज भी बड़ी ही गंभीरता के साथ याद करता है।
भगत सिंह को जब फांसी होने वाली थी वे नहीं चाहते थे कि उनकी जमानत हो। आम जनता ने मिलकर भगत सिंह की फांसी टालने के लिए वायसराय के सामने अलग-अलग तर्कों के साथ फांसी को टालने के लिए अपील की थी। हालांकि भगत सिंह के साथ-साथ उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। फाँसी पर जाते समय उनके आखिरी शब्द एक गीत के रूप में था। वे तीनों मस्ती में गा रहे थे
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।
भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन – Early Life of Bhagat Singh
भगत सिंह का जन्म लायलपुर जिले के बंगा में 19 अक्टूबर 1907 को हुआ था। अब यह क्षेत्र पाकिस्तान में है। भगत सिंह का जन्म एक सिख परिवार में हुआ था। जब भगत सिंह का जन्म हुआ था तब उनके पिता किशन सिंह जेल में थे। भगत सिंह को अपने घर से ही देश भक्ति की प्रेरणा मिली। उनके चाचा बहुत बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे। भगत सिंह के चाचा अजित सिंह के खिलाफ 22 केस दर्ज थे।
शहीद भगत सिंह की माता का नाम विद्यावती कौर था और पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। भगत सिंह पर 13 अप्रैल 1919 में हुए जालियाँवाला बाग हत्याकांड का गहरा प्रभाव पड़ा था। वे इस घटना से इतने दुखी हुए थे कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए कूद पड़े और नौजवान भारत सभा की स्थापना की।
Hindi Biography of Bhagat Singh
जलियाँबागा बाग कांड के बाद भगत सिंह
भगत सिंह जब 12 साल के थे जब देश में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ था। भगत सिंह महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे। हालांकि वह घर में अपने चाचा के क्रांतिकारी किताबों को पढ़कर अपने रास्ते पर विचार करते थे। गांधी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन को रद्द करने से भगत सिंह के अंदर छोड़ा रोष उत्पन्न हुआ। उसके बाद उन्होंने कई जुलूसों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया।
वे कई क्रांतिकारी दलों के सदस्य बने। उनके दलों में प्रमुख थे, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि। कारोरी काण्ड के बाद क्रांतिकारियों को फांसी और कारावास की सजा से भगत सिंह उग्र हो गए। उन्होंने 1928 में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में विलय कर दिया और दोनों को मिलाकर नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन।
17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने क्रांतिकारी दोस्त राजगुरु के साथ मिलकर लाहौर के पुलिस अधीक्षक जे पी सांडर्स की हत्या कर दी थी। इस कार्रवाई में उनके साथी चंद्रशेखर आजाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। उसके बाद भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर वर्तमान नई दिल्ली स्थित तत्कालीन ब्रिटिश भारत के सेण्ट्रल एसेम्बली में 8 अप्रैल 1929 को बम पेका। बम फेंकने के बाद उन्होंने नारा भी लगाया। नारा था –
इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद।
भगत सिंह की यह कार्रवाई अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए था। बम फेंकने के बाद दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी थी। हालांकि चाहते तो वे वहां से भाग सकते थे। लेकिन वे भागे नहीं। वे सिर्फ अंग्रेजी सरकार को जगाना चाहते थे। उन्हें दिखाना चाहते थे कि हिन्दुस्तान का मजदूर और जनता अब जाग चुकी है।
Biography of Bhagat Singh (Mahatma Gandhi and Bhagat Singh)
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला
1928 में भारत में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए प्रदर्शन किया गया। इन शांति प्रदर्शन में अंग्रेज शासन द्वारा लाठी चार्ज किया गया। निर्दोष और निहत्थे जनता पर लाठी चार्ज से आहत होकर लाला लाजपत राज की मृत्यु हो गई। इसके बाद भगत ने लाला लाजपत राज की मृत्यु का प्रतिशोध लेने की सोची।
भगत सिंह राजगुरु के साथ मिलकर लाहौर कोतवाली के सामने काफी व्यस्त मुद्रा में टहलने लगे। 17 दिसंबर 1928 को शाम करीब 4 बजकर 15 मिनट पर एएसपी सॉण्डर्स को राजगुरु ने एक गोली सीधे उनके सर में मारी। गोली लगने के बाद सॉण्डर्स वहीं पर गिर गया। इसके बाद भगत सिंह ने 3-4 लोगी और मार कर सॉण्डर्स का किस्सा खत्म कर दिया। इस प्रकार भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया।
जेल में भगत सिंह की जीवन यात्रा
हालांकि भगत सिंह को हिंसा पसंद नहीं था। लेकिन वे वामपंशी विचारधारा को मानते थे। फिर भी वे समाजवाद को आगे बढ़ा रहे थ और उसके सच्चे पोषक भी थे। भगत सिंह चाहते थे कि खून खराबा भी न हो और उनकी आवाज अंग्रेजी शासन तक भी पहुंचे। लेकिन बम कांड के बाद उन्हें जेल जाना पड़ा।
जेल में भगत सिंह करीब 2 साल तक रहे। जेल में रहते हुए ही वे अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहते थे। वे लगातार अपना अध्ययन करते रहे। अपने लेखों में भगत सिंह ने पूँजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने अपने सगे सम्बन्धियों को लिखे गए पत्र और लेखों में लिखा है –
मजदूरों का शोषण करने वाला चाहे एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है।
जेल में भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर 64 दिनों तक भूख हड़ताल भी किया। भूख हड़ताल के दौरान ही उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने अपने प्राण त्याग दिए थे। जेल में रहते हुए उन्होंने एक अंग्रेजी में एक लेख लिखा था। जिसका शीर्षक था – “मैं नास्तिक क्यों हूं?”
भगत सिंह के अंतिम दिन
26 अगस्त 1930 को अदालत ने भगत सिंह को तत्कालीन ब्रिटिश भारत की भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ और आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत सजा सुनाई। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई।
भगत सिंह की फांसी सजा के बाद जनता में रोष न भड़के इसलिए भारत के लाहौर (अब पाकिस्तान में) शहर में धारा 144 लगा दी गई। भगत सिंह की सजा माफी के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने 14 फरवरी 1931 को अपील दायर की। उन्होंने मानवता के आधार पर फांसी की सजा को माफ करने की अपील की।
17 फरवरी 1931 को महात्मा गांधी ने भगत सिंह की सजा माफी के लिए वायसराय से बात की। 18 फरवरी 1931 को आम जनता की ओर से वायसराय को कई तर्कों के साथ सजा माफी के लिए अर्जी दी गई। हालांकि भगत सिंह खुद नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ हो। भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को शाम 7:33 बजे फांसी दे दी गई।
भगत सिंह की आखिरी इच्छा
जब फांसी से पहले उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो वे उस समय लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। उन्होंने लेनिन की जीवनी पूरी पढ़ने के लिए समय मांगा। फांसी पर जाते समय वे तीनों बस एक ही गीत गा रहे थे –
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, माय रँग दे बसन्ती चोला।।
शहीद भगत सिंह जैसे शख्सियत के बारे में आज के युवा प्रेरणा लेते हैं। आज भी भारत और पाकिस्तान में भगत सिंह की जीवनी (Biography of Bhagat Singh) को आजादी के दीवाने के रूप में देखती है।